Tuesday, January 11, 2011

लट्टू


प्रेरणा स्त्रोत कुछ बच्चे एवं एक लट्टू



बाकी सभी दिंनो की तरह वो भी एक सर्दियों की आम सुबह थी। घर से बाहर निकला तो देखा गली के कुछ बच्चे खेलने में मग्न थे। वे सभी अपने अपने लट्टू चला रहे थे। सभी के अपने अपने तरीके थे। कुछ इस कला के महारथी थे तो कुछ शुरुआती दहलीज़ पर ही थे। मैं खुद भी लट्टू चलाना नहीं जानता था परन्तु मन के किसी कोने में इसे चलाने की इच्छा पनपी। सो देख कर मैंने भी पांच रुपये का निवेश करने का मानस बना लिया। जेब से पांच का सिक्का
निकाल कर बच्चों को ही दे दिया और कहा की सबसे बढ़िया वाला लट्टू खरीद कर लायें।

कुछ देर बाद ही लट्टू मेरे हाथ में था। अब जो नयी बाधा सामने थी वो था इसे चला पाना। मन ही मन हमने एक लट्टू धुरंदर को गुरु माना और शिक्षा लेनी प्रारंभ कर दी। पहले सीखा किस प्रकार से रस्सी को लट्टू के इर्द गिर्द लपेटा जाये। रस्सी लपेटने के मुझे दो तरीके बताए गए। फिर सीखा की किस प्रकार से लट्टू को पकड़ा जाये और उसे फेंका जाये। फेकने के भी अलग अलग प्रकार देख कर मैं दंग था। खैर प्रारंभिक शिक्षा पूर्ण करने के बाद मैंने हाथ आज़माना शुरू किया। मगर ये क्या, लट्टू छिटक कर इस तरह दूर भागा जैसे कोई तोता पिजरे से आज़ाद हुआ हो। नाचना तो दूर की बात थी।

एक बार, दो बार और फिर कई बार प्रयास किया परन्तु सब निरर्थक साबित हुए। हमने एक दो लट्टू महारथियों से पुनः आग्रह किया कि फिर से अपनी इस कला का प्रदर्शन करे ताकि मैं कुछ बारीकियां पकड़ सकू। कई बार उनके द्वारा चलाने कि प्रक्रिया को गौर से देखा। उनका एक भी वार खली नहीं जाता था। हर थ्रो पर लट्टू मुन्नी कि तरह नाचता और वाहवाही लूटता। और कभी कभी चलते लट्टू को वो अपनी हथेली में उठा लेते। वाकई बड़ा दर्शनीय नज़ारा होता था।

पुनः ठान कर हमने फिर से प्रयास करने का प्रण लिया। डोरी लपेट कर लट्टू जैसे ही छोड़ा नाचने कि बजाय दौड़ पड़ा। खैर जैसे तैसे काबू किया और फिर से प्रयत्न किया। मगर धाक के तीन पात वाली स्थिति हो गयी। लट्टू समझने को तैयार ही नहीं था। मैं समझ नहीं पा रहा था कि कौन किसे नचाने की कोशिश कर रहा है। एकबारगी तो मुझे अहसास हुआ कि लट्टू चलाने के फेर में मैं कुछ ज्यादा ही नाच गया पर कमबख्त लट्टू बेहया, बेशर्म कहीं टस से मस नहीं हुआ।

मेरी ये संवेदना किसी आम आदमी से कम नहीं है। जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। आप शायद समझ सकते हैं। वो लट्टू लट्टू न लग कर मुझे प्याज़ या लहसुन लग रहा था। जिस प्रकार प्याज़ आम आदमी को रुला रहा है और लहसुन आदमी के सर चढ़ कर नाच रहा है और आम आदमी बेबस लाचार चाह कर भी उसे अपने हाथ में नहीं ले पा रहा है। यही आम आदमी कि रोज़मर्रा कि ज़िन्दगी का असल सच है। यही वो लट्टू है जो धुरंदर खिलाडियों (राजनीतिज्ञों) के हाथ में जा कर किसी अलाद्दीन के चिराग के जिन्न कि भांति एक आज्ञाकारी सेवक बन जाता है। उन्हें पूरा हक़ है वे जब चाहे जहाँ चाहे एवं जिस प्रकार से चाहें लट्टू को अपनी हथेलियों पर भी नचा सकते हैं। ये लट्टू नुमा भारतीय राजनीति एक पीड़ादायी कड़वा सच है जिसका घूँट हमें रोज़ पीना ही है। आखिर जीना है तो इस सच्चाई का सामना हमें न चाह कर भी करना ही होगा।

15 comments:

  1. Bhaiya ji, ye jo aapne likha hai woh poorn satya hai. Aaj harek insaan ki zindagi rajneeti per hi naach rahi hai. Ab jaise tum khiladi banane chale they usi tarah har insaan rajneta bana firta hai. Tumne to lattu shayad chhod diya hoga but woh adad rajneta kabhi ye khwahish nahi chhodata... Rahi baat pyaj ki to ye to ek tarika ka anekon me jo is desh ko duba raha hai ... . - TARUN

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  2. As U know I don't eat onions so I dont cry and as far as lattu is concern I know how to use it so that is also not a problem for me but as U said politics a lattu and we all are moving around it that is absolutelyl right.

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  3. Acha hai.... Ek writer ke gunn nazar aa rahe hai! Lokesh

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  4. Ashwini Bhai, yeh ek tarife kabil sankshipt rachna hai.
    acha hai apne photo bhi diya sath main,
    varna aajkal ke bache to sirf Bay-blades ko hi jante hain.
    isi tarah likhte raho .... Dr. Jai Singh

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  5. Aap to bade writer hain.. kahan IT ke chakker mein pad gaye....

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  6. sahi kaha kee jindagi ek lattu hi to hai. ek aam adami kee sabse badi majburi bhee hai kee apne aap ko ek had tak band diya hai. agar bo chahe to apni takat ko pahchan kar us lattu (Jindgi roopi) ko bhi ghooma sakta hai bas ek koi jhonke yaa jidd kee jarurat hai. haan jarurat hai apne aap ko pahechane kee, kyoun kee jis eke aam adami nahi apni dor de rakhi hai ese ake aadmi ko jo hum jaisa ek aam admi hee tha.

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  7. Mukesh Ji: Pyaz ki maar se to bach gaye magar aaj petrol rupi naag phan phaila raha hai.

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  8. Jai Singh Ji: Ye tech yug hai jis prakar hamare office bag ki jagah laptop aur mobile ne le li hai usi prakar lattu ka swaroop badal kar Bay Blades ho gaya hai. Rachna pasand karne ke liye dhanyawad.

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  9. rachna lekhak k prarambhik awastha hone ka ehsaas dilaati hai. isme puri kahani ka mukhya swaroop anth main hi saamne aata hai jabki ho sakta hai ki hum path-ko stithi ka andaaja kahani ke beech main b dila sakte hai...
    parantu lekhak k vichar aaj k halaat ko darshaati hai aur ek saral si vastu ke dwara vichar rakhna prashanniye hai..
    aur lekhak ki apni shaili hoti hai..
    mujhe bishwaas hai ki aage hume aisi aur kahaniya padne ko milegi... :)

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  10. good written. keep going on 1fine day i'll take ur autograph

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  11. Hello sir,
    nicely written and definitely the scenario requires attention..
    regards..

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  12. Friends,

    Thanks all for appreciation.

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